मुख्यमंत्री ने चिरौंजी बेचकर आत्मनिर्भर बन रहे निपनिया के जनजातीय समाज की उद्यमिता को सराहा - KRANTIKARI SAMVAD

Breaking

Post Top Ad

Friday, July 28, 2023

मुख्यमंत्री ने चिरौंजी बेचकर आत्मनिर्भर बन रहे निपनिया के जनजातीय समाज की उद्यमिता को सराहा

 मुख्यमंत्री ने चिरौंजी बेचकर आत्मनिर्भर बन रहे निपनिया के जनजातीय समाज की उद्यमिता को सराहा




मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने गुरुवार को बड़गांव में आयोजित रोड शो के दौरान वनोपज चिरौंजी बेचकर आत्मनिर्भर बन रहे निपनिया और केवलारी गाँव के जनजाति समाज से भेंट की। मुख्यमंत्री ने जनजातियों द्वारा किए जा रहे चिरौंजी की बिक्री के कार्य के व्यावसायिक रूप से और अधिक सक्षम और सुदृढ़ बनाने के लिए दो लाख रुपए की सहायता राशि प्रदान की। जनजातीय समाज ने मुख्यमंत्री श्री चौहान को चिरौंजी का पैकेट उपहार स्वरूप प्रदान किया।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने जनजातीय समाज को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की दिशा में उठाए गए प्रयासों के लिए जिला प्रशासन की सराहना की। मुख्यमंत्री से रोड शो के दौरान मिले निपनिया और केवलारी के जनजातीय समाज ने बताया कि कृषि विभाग की आत्मा परियोजना की मदद से रानी दुर्गावती बहुउद्देशीय सहकारी समिति का गठन कर चिरौंजी प्रसंस्करण की इकाई स्थापित करने के बाद उन्हें चिरौंजी की अच्छी कीमत मिलना शुरू हुई। मुख्यमंत्री यह सुनकर बेहद खुश हुए। उन्होंने समिति के सदस्य महेश सिंह और मदन उरेती से बात कर अचार की गुठलियों से चिरौंजी निकालने तक की पूरी प्रक्रिया की जानकारी ली।

जनजातीय बंधुओं ने मुख्यमंत्री को चर्चा के दौरान बताया कि प्रसंस्करण यूनिट लगने के पहले तक व्यापारी और साहूकार उनसे मात्र 100 रूपए प्रति किलोग्राम की दर से चिरौंजी खरीदते थे और खुद चिरौंजी को खुले बाजार में बेचकर मोटा मुनाफा कमाते थे। लेकिन अब वे खुद चिरौंजी की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग करते हैं और सौ ग्राम चिरौंजी 180 रूपए में बेचते हैं। मुख्यमंत्री ने जनजातीय वर्ग के आर्थिक उत्थान के लिये प्रशासन द्वारा किए गए प्रयासों की भी प्रशंसा की।

जिले के बहोरीबंद क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले निपानिया और केवलारी ग्राम के करीब 400 जनजातीय परिवार आस-पास के वन में लगे अचार वृक्ष से चिरौंजी की गुठलियों को तोड़कर वर्षों औने-पौने दामों में व्यापारियों को बेचते रहे हैं। व्यापारी भी उनके भोलेपन का फायदा उठाकर उन्हें बहला-फुसलाकर, इनसे महंगी चिरौंजी को मात्र सौ रुपए प्रति किलो ग्राम की सस्ती कीमत में खरीदकर खुद खुले बाजार में बेचकर मोटा मुनाफा कमाते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं, जनजातियों ने प्रशासन की मदद से समिति बनाकर खुद की प्रसंस्करण इकाई लगाई और अब खुद चिरौंजी की पैकेजिंग और बिक्री कर आमदनी अर्जित कर रहे हैं।

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages