अब नेता करेंगे जजों का चयन, इजरायली संसद ने बदलाव को दी मंजूरी; बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ सड़कों पर उतरे लोग
इजरायल की संसद ने एक बिल को मंजूरी दी जिसके तहत न्यायाधीशों के चयन में राजनेताओं को अधिक अधिकार मिलेगा। यह बिल सरकार और विपक्ष द्वारा चयनित प्रतिनिधियों को न्यायाधीश चयन समिति में शामिल करने का प्रावधान करता है। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया जबकि सरकार का कहना है कि यह सुप्रीम कोर्ट के दखल को कम करने के लिए जरूरी है।

इजरायली संसद (Israel Parliament) ने गुरुवार को एक अहम बिल को अंतिम मंजूरी दे दी है, जिसके तहत राजनेताओं को न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया में अधिक अधिकार मिलेगा। यह बिल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) की सरकार के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों की एक प्रमुख वजह बन चुका है।
इस बिल के तहत न्यायाधीशों के चयन समिति के नौ सदस्य होंगे, जिनमें से पहले जो सदस्य इज़राइल बार एसोसिएशन द्वारा चुने जाते थे, उन्हें हटा दिया जाएगा और उनके स्थान पर सरकार और विपक्ष द्वारा चयनित प्रतिनिधि नियुक्त किए जाएंगे।

विपक्षी दलों ने लगाया आरोप
विपक्षी दलों ने इस बिल को इजरायल के लोकतंत्र के एक अहम स्तंभ पर हमला बताया है। विपक्ष ने इसका विरोध करते हुए अंतिम वोट से खुद को दूर रखा। न्याय मंत्री यारिव लेविन ने इस नए कानून का समर्थन करते हुए कहा कि यह कानून अगली संसद के कार्यकाल से प्रभावी होगा और यह चयन समिति के संतुलित और प्रतिनिधित्वपूर्ण गठन को सुनिश्चित करेगा। उनका कहना था कि इस बिल के जरिए योग्य उम्मीदवारों को उनके विचारों के कारण चयन से बाहर नहीं किया जाएगा।

बिल के पारित होने पर हो रहा विरोध
इस बिल के पारित होने के बाद विरोध और भी तेज हो गए हैं। तेल अवीव में एक विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले रॉनी मलमुक ने कहा, "आज का दिन बहुत अहम है क्योंकि सरकार ने एक ऐसा कानून पारित किया है जो लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है और इसे अब एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया है।"
बता दें, यह बिल इजरायल की राजनीति में गहरा असर डाल सकता है और यह कई मुद्दों में से एक है जिसने 2023 में इजरायल में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया था।

सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों पर नियंत्रण की कोशिश
सरकार का कहना है कि इस बिल और अन्य उपायों को लागू करने की जरूरत है ताकि सुप्रीम कोर्ट (Israel Supreme Court) के दखल को संसद के कामकाज में कम किया जा सके। इसके आलोचक मानते हैं कि यह कदम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने का प्रयास है। वे इसे न्यायपालिका के अधिकारों को खत्म करने की एक कोशिश मानते हैं, जिससे सरकार को अधिक ताकत मिल सके।
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